BRICS में कोरिया-जापान की एंट्री से लड़खड़ा सकता है ट्रंप का गेमप्लान! आंकड़ों ने बढ़ाई अमेरिका की चिंता

नई दिल्ली: दुनिया के बड़े आर्थिक संगठन BRICS ने बीते कुछ सालों में जिस रफ्तार से अपनी ताकत बढ़ाई है, उसने अमेरिका को कई मोर्चों पर चुनौती देना शुरू कर दिया है। अब जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जापान और दक्षिण कोरिया पर 25% आयात शुल्क लगाने का बड़ा दांव चला है, तो एशिया के ये दोनों बड़े देश BRICS के और करीब आते दिख रहे हैं। अगर जापान और दक्षिण कोरिया BRICS में शामिल होते हैं तो ट्रंप का सारा टैरिफ गेम ध्वस्त हो सकता है और अमेरिका को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।

BRICS क्यों है अमेरिका के लिए सिरदर्द?

दरअसल, BRICS में पहले ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका थे, लेकिन अब इसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान, यूएई और इंडोनेशिया भी जुड़ चुके हैं। यानी संगठन के कुल सदस्य अब 10 हो चुके हैं। ये देश न केवल वैश्विक जीडीपी में 30% से ज्यादा का योगदान करते हैं, बल्कि दुनिया की करीब 45% आबादी इन्हीं देशों में रहती है। यही नहीं, BRICS देशों का आपसी व्यापार 1 ट्रिलियन डॉलर के पार जा चुका है और अब वो अपनी स्थानीय मुद्राओं में लेनदेन को भी बढ़ावा दे रहे हैं ताकि अमेरिकी डॉलर पर निर्भरता घटे।

ट्रंप की टैरिफ पॉलिसी पर मंडरा रहा खतरा

ट्रंप का पूरा फोकस अमेरिका के आर्थिक हितों को बचाने पर है। उन्होंने जापान और दक्षिण कोरिया के साथ-साथ BRICS देशों पर भी 10 से 40 फीसदी तक के नए टैरिफ लागू कर दिए हैं, जो 1 अगस्त 2025 से प्रभावी होंगे। इसका मकसद तो अमेरिकी व्यापार घाटा कम करना है, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि इसका उल्टा असर हो सकता है।

  • अगर कोरिया और जापान BRICS में आ गए तो ये संगठन और ज्यादा ताकतवर होगा।
  • BRICS देशों के आपसी व्यापार में तेजी आएगी और अमेरिका के साथ उनकी डील्स कमजोर होंगी।
  • सप्लाई चेन कॉस्ट बढ़ने से अमेरिकी बाजार में महंगाई का दबाव भी बढ़ सकता है।

BRICS बनाम अमेरिका: आंकड़े क्या कहते हैं?

BRICS का आपसी व्यापार:
साल 2025 में BRICS देशों का आपसी व्यापार 1 ट्रिलियन डॉलर पार कर गया है, जो दुनिया के कुल व्यापार का करीब 20% हिस्सा है। रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने भी हाल ही में इसका जिक्र करते हुए कहा कि BRICS की ताकत लगातार बढ़ रही है।

BRICS का जापान-दक्षिण कोरिया के साथ व्यापार:

  • चीन और दक्षिण कोरिया के बीच सालाना करीब 300 अरब डॉलर का व्यापार होता है।
  • चीन और जापान का आपसी व्यापार 350 अरब डॉलर तक पहुंच गया है।
  • भारत का जापान और कोरिया से व्यापार 47 अरब डॉलर के करीब है।
  • रूस, ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका भी मिलकर कोरिया-जापान के साथ लगभग 50 अरब डॉलर का व्यापार कर रहे हैं।

BRICS का अमेरिका से व्यापार:
अकेले चीन का अमेरिका से व्यापार 700 अरब डॉलर के करीब है। भारत का भी अमेरिका के साथ सालाना कारोबार 250 अरब डॉलर तक पहुंच रहा है। कुल मिलाकर BRICS देशों का अमेरिका से व्यापार 1,170 अरब डॉलर के आसपास है।

जापान-दक्षिण कोरिया को BRICS क्यों है मुफीद?

  • ट्रंप के टैरिफ से दोनों देशों के लिए अमेरिका में निर्यात करना महंगा हो जाएगा।
  • BRICS में शामिल होकर वे स्थानीय मुद्रा में ट्रेड कर सकेंगे, जिससे डॉलर पर निर्भरता घटेगी।
  • BRICS के साथ मुक्त व्यापार समझौते से उन्हें नए बाजार मिलेंगे और व्यापार घाटे की भरपाई भी हो जाएगी।
  • BRICS देशों के पास ऊर्जा, खनिज, कृषि और मैन्युफैक्चरिंग जैसे सेक्टर में बड़े अवसर हैं, जिनमें जापान और कोरिया निवेश कर सकते हैं।

 अमेरिका क्यों परेशान है BRICS के विस्तार से?

अमेरिका को सबसे बड़ा डर BRICS की डि-डॉलराइजेशन पॉलिसी से है। BRICS देश अपनी स्थानीय करेंसी में ट्रेड को तेजी से बढ़ावा दे रहे हैं। साल 2023 में BRICS देशों ने लगभग 500 अरब डॉलर का व्यापार अपनी मुद्रा में किया था। रूस और चीन ने तो आपसी व्यापार का 95% रूबल और युआन में कर दिया है। अगर जापान और दक्षिण कोरिया भी इसी दिशा में बढ़ते हैं तो अमेरिका का डॉलर प्रभुत्व कमजोर होगा।

ट्रंप की योजना कैसे हो सकती है फेल?

अगर जापान और दक्षिण कोरिया BRICS में शामिल होते हैं तो यह समूह अपने आप में इतना मजबूत हो जाएगा कि अमेरिका को टैरिफ लगाने का कोई बड़ा फायदा नहीं होगा।

  • BRICS देशों के पास विकल्प होंगे कि वे आपसी व्यापार को बढ़ाकर अमेरिकी बाजार पर निर्भरता घटा दें।
  • अमेरिका को जापान और कोरिया से जो 500 अरब डॉलर का व्यापारिक फायदा होता है, उसमें कमी आ सकती है।
  • सप्लाई चेन कॉस्ट बढ़ने से अमेरिकी कंपनियां भी झटका खा सकती हैं।

आंकड़ों में छिपा बड़ा संदेश

साफ है कि BRICS में कोरिया और जापान के शामिल होने की संभावनाएं ट्रंप के लिए बड़ी चुनौती हैं। अगर ऐसा होता है तो BRICS देशों का आपसी व्यापार और मजबूत होगा, उनकी मुद्रा पर निर्भरता बढ़ेगी और अमेरिका के लिए अपना टैरिफ प्लान बचा पाना मुश्किल हो जाएगा। आने वाले महीनों में इस समीकरण पर दुनिया की नजर बनी रहेगी क्योंकि यह वैश्विक व्यापार और अर्थव्यवस्था के समीकरण को पूरी तरह बदल सकता है।