शादीशुदा बेटियों को मिलेगा कृषि भूमि में अधिकार? सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला जल्द

सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें विवाहित महिलाओं को भी अपने माता-पिता की कृषि भूमि में समान अधिकार देने की मांग की गई है। यह याचिका महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए दायर की गई है और इसका उद्देश्य उत्तर प्रदेशउत्तराखंड के भूमि उत्तराधिकार कानूनों को चुनौती देना है, जो विवाहित और अविवाहित बेटियों के साथ भेदभाव करते हैं।

याचिका में उठाए गए मुख्य मुद्दे

  1. उत्तराधिकार में भेदभाव:
    • मौजूदा कानून के तहत, अविवाहित बेटियां माता-पिता की कृषि भूमि की उत्तराधिकारी मानी जाती हैं।
    • विवाहित बेटियों को इस अधिकार से वंचित रखा गया है।
  2. संविधान का उल्लंघन:
    • यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन करता है, जो समानता और भेदभाव से सुरक्षा प्रदान करता है।
  3. पुनर्विवाह का प्रभाव:
    • यदि विधवा महिला पुनर्विवाह करती है, तो उसका कृषि भूमि पर अधिकार समाप्त हो जाता है।
    • पुरुषों के मामले में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है।

न्यायालय का नोटिस और सुनवाई की तारीख

मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने केंद्र सरकार और उत्तर प्रदेश व उत्तराखंड सरकार को चार सप्ताह में जवाब देने का निर्देश दिया है। अगली सुनवाई 10 दिसंबर को होगी।

महिलाओं के अधिकारों पर याचिका की राय

याचिका में कहा गया है कि विवाह किसी महिला के उत्तराधिकार के अधिकार को प्रभावित नहीं करना चाहिए। यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और मौलिक अधिकार का हिस्सा है।

  • यदि महिला पति की भूमि की उत्तराधिकारी बनती है, तो उसकी मृत्यु के बाद भूमि उसके परिवार के बजाय पति के वारिसों को मिलती है।

न्यायालय से अपेक्षाएं

यह मामला महिलाओं के समान अधिकार और संपत्ति में बराबरी की दिशा में बड़ा कदम है। सुप्रीम कोर्ट से उम्मीद की जा रही है कि वह इस भेदभाव को समाप्त करने और महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों को सुरक्षित करने के लिए सकारात्मक निर्णय देगा।

 

 

 

 

 

 

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