
भारत अपनी पहली हाइड्रोजन से चलने वाली ट्रेन लॉन्च करने जा रहा है, जो देश में पर्यावरण-अनुकूल और स्थायी परिवहन की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस ट्रेन का पहला परीक्षण हरियाणा के जींद-सोनीपत मार्ग पर किया जाएगा, जिसमें अधिकतम गति 110 किमी प्रति घंटा होगी।
हाइड्रोजन संचालित रेल तकनीक में भारत की बड़ी उपलब्धि
भारत ने दुनिया की सबसे शक्तिशाली हाइड्रोजन ईंधन से चलने वाली रेल इंजन विकसित की है, जिसकी क्षमता 1,200 हॉर्सपावर (HP) है। यह उपलब्धि वैश्विक मानकों से कहीं अधिक है, क्योंकि अधिकतर देशों में हाइड्रोजन ट्रेनें 500-600 HP की क्षमता तक सीमित हैं। इस तकनीक के साथ, भारत जर्मनी, फ्रांस, स्वीडन और चीन के बाद हाइड्रोजन ट्रेन चलाने वाला दुनिया का पांचवां देश बन जाएगा।
इको-फ्रेंडली और कुशल परिवहन
डीजल इंजनों के विपरीत, हाइड्रोजन ट्रेनें केवल पानी और गर्मी का उत्सर्जन करती हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन शून्य हो जाता है। ये ट्रेनें ध्वनि प्रदूषण को भी काफी हद तक कम करेंगी। यह भारतीय रेलवे की 'हाइड्रोजन फॉर हेरिटेज' पहल का हिस्सा है, जिसके तहत देशभर में 35 हाइड्रोजन ईंधन चालित ट्रेनों को शुरू करने की योजना है। इस परियोजना के लिए वित्तीय वर्ष 2023-24 में सरकार ने 2,800 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।
हाइड्रोजन ट्रेन परीक्षण और आधारभूत संरचना
भारतीय रेलवे के उत्तरी रेलवे डिवीजन को पहली हाइड्रोजन ट्रेन प्राप्त हो चुकी है और इसका परीक्षण 89 किमी लंबे जींद-सोनीपत खंड पर किया जाएगा। प्रत्येक हाइड्रोजन ट्रेन के निर्माण की अनुमानित लागत 80 करोड़ रुपये है, जबकि मार्गों पर बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अतिरिक्त 70 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे।
हाइड्रोजन उत्पादन और ईंधन भरने की सुविधा
हाइड्रोजन ट्रेन परियोजना के तहत, भारतीय रेलवे ने हरियाणा के जींद में हाइड्रोजन उत्पादन केंद्र स्थापित किया है। यह केंद्र 1 मेगावाट पॉलीमर इलेक्ट्रोलाइट मेंब्रेन (PEM) इलेक्ट्रोलाइज़र से सुसज्जित है, जो प्रतिदिन लगभग 430 किलोग्राम हाइड्रोजन उत्पन्न करने में सक्षम होगा। इसके अतिरिक्त, ट्रेन में सुरक्षित ईंधन भरने के लिए 3,000 किलोग्राम हाइड्रोजन भंडारण प्रणाली, हाइड्रोजन कंप्रेसर और प्री-कूलर की भी व्यवस्था की गई है।
गति और यात्री क्षमता
यह हाइड्रोजन ट्रेन अधिकतम 110 किमी प्रति घंटा की गति से चल सकेगी और कुल 2,638 यात्रियों को ले जाने की क्षमता रखेगी। इस परियोजना के लिए जींद-सोनीपत मार्ग का चयन इसलिए किया गया है क्योंकि इस क्षेत्र का रेलवे बुनियादी ढांचा काफी मजबूत है।
2030 तक नेट-जीरो उत्सर्जन लक्ष्य की ओर कदम
हाइड्रोजन ट्रेनों की शुरुआत भारतीय रेलवे के 2030 तक नेट-जीरो कार्बन उत्सर्जन लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। हालांकि इस परियोजना में शुरुआती निवेश अधिक है, लेकिन लंबी अवधि में यह ईंधन लागत को कम करने, पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव डालने और स्थायी ऊर्जा समाधानों को बढ़ावा देने में सहायक सिद्ध होगी।
इस ऐतिहासिक पहल के साथ, भारत अपने रेलवे क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव लाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है, जिससे सार्वजनिक परिवहन को अधिक हरित और टिकाऊ बनाया जा सकेगा।