30 साल पुराने संपत्ति विवाद में आया ऐतिहासिक फैसला: बहन को मिली जीत, सुप्रीम कोर्ट ने समझाया ‘गिफ्ट डीड’ और ‘वसीयत’ का फर्क

भारत में पारिवारिक संपत्ति को लेकर कानूनी विवाद आम हैं, पर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले ने ‘गिफ्ट डीड’ और ‘वसीयत’ के बीच का महत्वपूर्ण अंतर स्पष्ट कर दिया है। यह फैसला केरल के एक 30 साल पुराने मामले में आया, जिसमें बहन और भाई के बीच जमीन को लेकर लंबे समय से कानूनी लड़ाई चल रही थी।

कहानी की शुरुआत 1985 से

1985 में एक पिता ने रजिस्टर्ड गिफ्ट डीड के जरिए अपनी संपत्ति अपनी बेटी को सौंप दी थी। इसमें शर्त रखी गई थी कि उनके और उनकी पत्नी की मृत्यु के बाद ही बेटी उस संपत्ति की पूर्ण स्वामिनी बनेगी। लेकिन 1993 में पिता ने उसी संपत्ति को एक सेल डीड के माध्यम से बेटे को बेच दिया।

इसके बाद, जब 1995 में पिता का निधन हुआ, तो दोनों भाई-बहन के बीच संपत्ति को लेकर मुकदमा शुरू हो गया। निचली अदालतों ने शुरुआत में बेटे के पक्ष में फैसला सुनाया, लेकिन 2019 में केरल हाईकोर्ट ने बेटी को हकदार माना। मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, जहां 2025 में अंतिम फैसला बहन के पक्ष में सुनाया गया।

गिफ्ट डीड, वसीयत और सेटलमेंट डीड: क्या होता है फर्क?

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले ने यह स्पष्ट किया कि गिफ्ट डीड, सेटलमेंट डीड, और वसीयत (Will) तीनों अलग-अलग कानूनी दस्तावेज हैं और इनका प्रभाव भी अलग-अलग समय पर होता है।

  • गिफ्ट डीड (Gift Deed):
    यह एक ऐसा रजिस्टर्ड दस्तावेज होता है जिसमें कोई व्यक्ति बिना किसी भुगतान के अपनी संपत्ति किसी और को सौंपता है। एक बार जब यह दस्तावेज रजिस्टर्ड हो जाए और रिसीवर इसे स्वीकार कर ले, तो इसे आसानी से रद्द नहीं किया जा सकता।
  • सेटलमेंट डीड (Settlement Deed):
    इसमें संपत्ति ट्रांसफर के साथ कुछ शर्तें जोड़ी जा सकती हैं, जैसे दाता जीवनभर संपत्ति का उपयोग करेगा।
  • वसीयत (Will):
    यह केवल मृत्यु के बाद प्रभावी होती है और व्यक्ति इसे अपने जीवनकाल में जब चाहे बदल सकता है।

‘वसीयत’ नहीं थी, ‘गिफ्ट डीड’ थी: सुप्रीम कोर्ट

अदालत ने यह भी कहा कि उस दस्तावेज़ में पिता ने अपनी संपत्ति का स्वामित्व त्याग दिया था, जो दर्शाता है कि यह वसीयत नहीं बल्कि गिफ्ट डीड थी। और चूंकि वह दस्तावेज़ वैध रूप से रजिस्टर्ड था, इसलिए बाद में की गई कोई भी सेल डीड उसे रद्द नहीं कर सकती।

निष्कर्ष: कोर्ट ने क्या संदेश दिया?

सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट कर दिया कि एक बार जब कोई गिफ्ट डीड कानूनी रूप से बनकर पंजीकृत हो जाए, तो उसे किसी दूसरी डीड के जरिए बिना ठोस कानूनी आधार के निरस्त नहीं किया जा सकता। इस फैसले ने हजारों चल रहे संपत्ति विवादों के लिए एक मिसाल कायम की है।