रमजान 2025: इस्लाम में रोजे की परंपरा कब शुरू हुई और इसका धार्मिक महत्व क्या है?

रमजान मुस्लिम समुदाय के लिए सबसे पवित्र महीना माना जाता है, जिसमें लोग रोजा रखते हैं, नमाज पढ़ते हैं और इबादत में समय बिताते हैं। इस दौरान, सूर्योदय से सूर्यास्त तक रोजेदार कुछ भी खाते-पीते नहीं हैं। यह उपवास इस्लाम के पांच स्तंभों में से एक है और हर वयस्क मुस्लिम पुरुष और महिला के लिए अनिवार्य माना जाता है।

रोजे की शुरुआत कब हुई?

इस्लाम में रोजे की परंपरा की शुरुआत दूसरी हिजरी में हुई थी। इस्लामिक विद्वानों के अनुसार, पैगंबर मोहम्मद जब मक्का से मदीना हिजरत करके पहुंचे, तो एक साल के भीतर रोजे को फर्ज (अनिवार्य) करार दिया गया। कुरान की सूरह अल-बकरा में यह कहा गया है कि रोजा तुम पर उसी तरह फर्ज किया गया है, जैसे तुमसे पहले की उम्मतों (समुदायों) पर फर्ज किया गया था।

रमजान का महत्व

रमजान को इस्लाम में एक विशेष स्थान प्राप्त है क्योंकि इसी महीने में कुरान नाज़िल हुआ था। इस महीने में की गई इबादत और नेक कार्यों का कई गुना अधिक सवाब (पुण्य) मिलता है। ऐसा माना जाता है कि इस महीने में जन्नत (स्वर्ग) के दरवाजे खोल दिए जाते हैं और जहन्नुम (नरक) के दरवाजे बंद कर दिए जाते हैं।

रोजा रखने के नियम और प्रक्रिया

  1. सहरी (भोर के भोजन): रोजा शुरू करने से पहले सूरज उगने से पहले सहरी करना आवश्यक होता है।
  2. नियत (इरादा करना): रोजेदार को दिल से रोजा रखने की नीयत करनी होती है।
  3. इफ्तार (सूर्यास्त के बाद उपवास तोड़ना): सूर्यास्त के समय रोजा खोलने की परंपरा है, जिसे इफ्तार कहा जाता है। आमतौर पर यह खजूर और पानी से शुरू किया जाता है।
  4. तरावीह नमाज: रमजान के दौरान विशेष तरावीह की नमाज अदा की जाती है।

कौन लोग रोजे से छूट प्राप्त कर सकते हैं?

  • बीमार व्यक्ति जो स्वास्थ्य कारणों से उपवास नहीं रख सकते।
  • गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाएं।
  • मासिक धर्म के दौरान महिलाएं।
  • यात्रा कर रहे लोग।
  • बुजुर्ग और अस्वस्थ लोग।

जो लोग रोजा नहीं रख सकते, उन्हें बाद में कजा (छूटे हुए रोजे रखना) करना चाहिए या फिर जरूरतमंदों को भोजन देकर उसका बदला अदा करना चाहिए।

रमजान 2025 की संभावित तारीखें

इस्लामिक कैलेंडर के अनुसार, रमजान का महीना चांद देखने पर निर्भर करता है। 2025 में रमजान का चांद 28 फरवरी को दिखाई देने की संभावना है, और पहला रोजा 1 या 2 मार्च से शुरू हो सकता है।

निष्कर्ष

रमजान का महीना आत्मसंयम, आत्मा की शुद्धि और इबादत का समय होता है। यह महीना सिर्फ भूख और प्यास सहने के लिए नहीं, बल्कि मानसिक और आत्मिक विकास के लिए भी होता है। इस दौरान मुसलमानों को अपने व्यवहार में संयम रखने, अच्छे कार्य करने और जरूरतमंदों की मदद करने की सीख दी जाती है। रमजान के दौरान किए गए अच्छे कर्मों का सत्तर गुना सवाब मिलता है, जो इसे इस्लाम में सबसे महत्वपूर्ण महीनों में से एक बनाता है।