मोहन भागवत को संतों का विरोध: 'धार्मिक मामलों का निर्णय धर्माचार्यों का अधिकार, RSS का नहीं'

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) प्रमुख मोहन भागवत की हालिया टिप्पणी, जिसमें उन्होंने हिंदुओं से मंदिर-मस्जिद विवाद न उठाने की सलाह दी, पर संत समाज में भारी असहमति जारी है। अखिल भारतीय संत समिति (AKSS) सहित कई प्रमुख संतों ने उनके बयान पर तीखी प्रतिक्रिया दी है।

मुख्य बिंदु:

  1. संतों का विरोध:
    • जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भागवत के बयान पर असहमति व्यक्त की।
    • स्वामी जितेन्द्रानंद सरस्वती (AKSS महासचिव) ने कहा कि धर्म से जुड़े मामलों का निर्णय केवल धर्माचार्यों द्वारा किया जाना चाहिए, न कि किसी सांस्कृतिक संगठन द्वारा।
  2. धर्माचार्यों की भूमिका:
    • स्वामी सरस्वती ने कहा, "धर्म के विषय पर निर्णय केवल धर्माचार्य करेंगे और संघ व विश्व हिंदू परिषद (VHP) इसे स्वीकार करेंगे।"
    • उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि 56 नए स्थानों पर मंदिर संरचनाओं की पहचान की गई है।
  3. भागवत का बयान:
    • पुणे में एक व्याख्यान में भागवत ने कहा कि राम मंदिर निर्माण के बाद कुछ लोग मंदिर-मस्जिद विवाद उठाकर हिंदू नेता बनने की कोशिश कर रहे हैं, जो स्वीकार्य नहीं है।
    • उन्होंने कहा, "हमें सामंजस्य का मॉडल प्रस्तुत करना चाहिए और विवाद नहीं फैलाना चाहिए।"
  4. अन्य संतों की प्रतिक्रिया:
    • स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने भागवत के बयान को "सुविधाजनक बयानबाजी" बताया।
    • जगद्गुरु रामभद्राचार्य ने कहा, "मोहन भागवत हमारे अनुशासनकर्ता नहीं हैं, बल्कि हम हैं।"
  5. मंदिर-मस्जिद विवाद:
    • हिंदू समूहों ने कई याचिकाएं दायर की हैं, जिसमें उन्होंने मस्जिदों को मंदिरों की जगह बताया है।
    • यूपी के संभल में शाही जामा मस्जिद के खिलाफ याचिका को लेकर हाल में विवाद हुआ।

 

 

 

 

 

 

 

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